शिव मंत्र तंत्र सिद्धि

शिव मंत्र तंत्र सिद्धि: हिंदू धर्म के ग्रंथों व पुराणों में भगवान शिव को देवाधीदेव कहा गया है। एकादश रुद्राणियां, चैंसठ योगिनियां और भैरवादि इनके सहचर-सहचरी हैं। त्रिदेवों में ब्रह्मण और विष्णु से अलग सर्वशक्तिमान महेश अर्थात महादेव, शिव, शंकर, भोलेनाथ, रुद्र, नीलकंठ, भैरव आदि को विधिवत पूजा-उपासना, मंत्र-जाप और तंत्र साधना-सिद्धि से प्रसन्न किया जाता है। इनकी आराधना के लिए प्रभावशाली मंत्रों में पंचाक्षर और महामृत्युंजय का प्रयोग सदियों से होता आया है। इसके साथ ही कई मंत्र और तंत्र साधनाएं ऐसे भी हैं, जिनके प्रयोग से न केवल जीवन को सरल-सहज और सुखमय बनाया जा सकता है, बल्कि मुश्किलों की घड़ी में समस्त बाधाओं को भी दूर किया जा सकता है।

शिव मंत्र तंत्र सिद्धि

बाधा से मुक्तिः यह सर्वमान्य है कि शिव मंत्र का अूचक असर बिगड़े काम को बना देता है। भगवान शंकर का पंचाक्षर अर्थात पांच अक्षरों का मंत्र ऊँ नमः शिवाय अमोध और मो़क्षदायी है। मान्यता है कि इसमें सृष्टि समाई हुई है और इसका व्यापक असर होता है। सरलता से जाप किए जाने वाले अन्य मंत्रों में मुख्य इस प्रकार हैंः-

ऊँ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय!
नमः शिवाय!
इं, क्षं, मं औं, अं!
प्रौं ह्रीं ठः!
नमो नीलकण्ठय!
ऊँ पार्वतीपतये नमः!
ऊँ नमो भगवते दक्षिणामूत्र्तेये मह्मं मेधा प्रयच्छ स्वाहा!!

विषम व विकट परिस्थितियों मं यदि निम्न मंत्र का एक लाख बार जाप किया जाए, तो कठिन बधाओं से मुक्ति मिलती है। किसी बड़ी समस्या और विध्न-बाधा को हटाकर अनहोनी की आशंका को हमेशा के लिए खत्म किया जा सकता है। श्रद्धापूर्वक किए गए इस जाप को शिवलिंग पर बेल पत्र अर्पित करने के बाद जल का अध्र्य देकर करना चाहिए। मंत्र हैः-

ऊँ नमः शिवाय शुभं शुभं कुरु कुरु शिवाय नमः ऊँ!!

मनोकामना पूर्तिः शिव-मंत्र की साधना से अगर बिध्न-बाधाओं को दूर किया जा सकता है, तो भक्ति-भाव से की गई साधना-सिद्धि व मंत्र-जाप से मनोकामना पूर्ति भी संभव है। भगवान शिव स्वरूप विविधता लिए हुए शक्ति-युक्त हैं। इस कारण उनकी कृपा से परिवार के हर आयुवर्ग के सदस्यों की मनोकामना पूर्ण होती है। इसके लिए उनकी पूजा पूरी तरह से विधि-विधान अर्थात आसन ग्रहण, कलश स्थापन, मनोकामना पूर्ति संबंधी संकल्प, गणेश पूजन, नवैद्य व फल अर्पण, ध्यान और स्तूति पाठ से की जाती है। उसके बाद निम्न गोपनीय मंत्र का रुद्राक्ष की अभिमंत्रित माला से कम से कम 11 माला का जाप किया जाता है। मंत्र हैः- ऊँ ऐं साम्ब सदाशिवाय नमः!!

इसके जाप पूर्ण होने के बाद आरती कर चढ़या हुआ प्रसाद परिवार व उपस्थित सदस्यों के बीच वितरित कर देना चाहिए। इस अनुष्ठान को सोमवार से शुरु कर ग्यारह दिनों तक करना करना चाहिए।

कष्टों से मुक्तिः भगवान शिव के तांत्रोत्क शिव मंत्र साधना से किसी भी तरह के कष्ट से मुक्ति मिलती है। इस बारे में ऐसे व्रत-पूजन की मान्यता सदियों से चली आ रही है, जिससे भीषण से भीषण कष्ट में आकंठ डूबा व्यक्ति उबर सकता है, तो मृत्युलोक के द्वार तक पहुंचे व्यक्ति का भी वापस लौटना संभव हो जाता है। वह पर्व फाल्गुन माह की कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाने वाला महाशिवरात्री है। वैसे हर माह की चतुर्दशी तिथि के स्वामी भगवान शिव होते हैं। इस कारण इस दिन शिवरात्री की पूजा विधान है, लेकिन महाशिवरात्री के मौके पर तंत्र साधना से मनेवांछित सुख की कामना पूरी होती है। इसकी महत्ता के बारे में शास्त्रों में वर्णित हैः-

धारयत्चखिलं देवत्यं विष्णु विरंचि शक्तिसंयुक्त्,

जगदस्तित्वं यंत्रमंत्र नमामि तंत्रात्मकं शिवम्।

अर्थात विभिन्न शक्तियों, विष्णु और ब्रह्मा जिस कारण देवी एवं देवताओं में विराजमान है, जिसके कारण जगत का अस्तित्व है, जो यंत्र हैं, मंत्र हैं। ऐसे तंत्र के रूप में विद्यमान भगवान शिव को नमस्कार है। इस आशय को गहराई तक समझने वाले और श्रद्धा भाव रखने वाले यदि कोई व्यक्ति संपूर्ण विधि-विधान के साथ महाशिवरात्री की शाम को दिए गए मंत्र का 21, 51 या 108 बार जाप करे तो भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और मनोकामना पूरी होती है। इसके लिए ध्यान मंत्र का भी उतना ही महत्व है जितना तांत्रोत्क शिव मंत्र का। वे इस प्रकार हैंः-

ध्यान मंत्र

ध्याये नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारूचंद्रा वतंसं।

रत्नाकल्पोज्ज्वलांगं परशुमृगवराभतिहस्तं प्रसन्नम।।

पद्मासीनं समंतात् स्तूततममरगणैव्र्याघ्रकृत्तिं वसानं।

विश्वाद्यं विश्बद्यं निख्लिभय हरं पञच्वक्लं त्रिनेत्रम्।।

तंात्रोत्क मंत्रः

ह्रीं ऊँ हौं शं नमो भगवते सदाशिवाय।

इस अनुष्ठान को केवल रुद्राक्ष की माला से ईशान दिशा में मुखकर करना चाहिए। ध्यान मंत्र के उच्चारण के बाद अपनी मनोकामना या उस कष्ट का मन में संकल्प लेना चाहिए जिसे दूर करना चाहते हैं।

लक्ष्य प्राप्ति की अघोर शिव साधना: प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में कुछ नया और अद्भुत करने का लक्ष्य होता है। कुछ नहीं तो करिअर, कारोबार या सफल व्यक्तित्व का उद्देश्य अवश्य रहता है। निरंतर प्रयास के साथ-साथ लक्ष्य साधने की कोशिश और जीवटता बनी रहे, इसके लिए यदि अघोर शिव साधना की जाए तो चमत्कारी लाभ निश्चित है। मान्यता है कि प्रत्येक साधक के लिए लक्ष्य साधने का यह आसाना जरिया है। इस साधना में सभी प्रकार के ग्रह दोषों से मुक्ति मिलती है। यह दूसरे तांत्रिक प्रभावों या इस जन्म से लेकर पूर्वजन्म के दोषों से भी छुटकारा दिलवाता है। यह साधना वैदिक या शाबर मंत्र से की जा सकती है। इसके लिए हकीक या रुद्राक्ष की माला से निम्न मंत्र का 11माला जाप किया जाता है। मंत्र हैः-

ऊँ ह्रां ह्रीं हूं अघोरेभ्यो सर्व सिद्धिं देही देही अघोरेश्वराय हूं ह्रीं ह्रां ऊँ फट!!

यह एक तांत्रिक मंत्र है। इसलिए इस जाप को आधी रात में इशान दिशा की ओर मुखकर काले रंग के आसन पर बैठकर किया जाता है। अपने सामने रखे पारद शिवलिंग का गणेश पूजन करने के बाद आसन को कील या लोहे की धारदार वस्तु से ऊँ रं अग्नि-प्रकाराय नमः मंत्र का उच्चारण करते हुए गोलकार घेरा बना लिया जाता है। इस तरह से बने रक्षा कवच के बाद महामृत्यंुजय मंत्र का उच्चारण करते हुए भस्म और चंदन का तिलक लगाया जाता है। साधना पूर्ण होने पर बेलपत्र, दूध के व्यंजन, जल, अक्षत (साबुत चावल), सुगंध, वस्त्र, लड्डू आदि का भोग लगाया जाता है।

साधना पूर्ण होने पर किया जाने वाला प्रार्थना आवश्यक है। वह हैः-

जय शम्भो विभो अघोरेश्वर स्वयंभे जय शंकर।

जयेश्वर जयेशान जय जय सर्वज्ञ कामदं।।

आकर्षण या वशीकरण साधनाः भगवान शिव के 64 तंत्रों की रचना में आकर्षण यानि वशीकरण की साधना के बारे में भी बताया गया है। इन्हीं में एक है तेल मोहिनी साधना। इसके द्वारा किसी व्यक्ति को आकर्षित या कहें सम्मोहित किया जा सकता है। नीचे दिए गए मंत्र का जाप प्रतिदिन दो घंटे तक सरसों के तेल का दीपक जलाकर 41 दिनांे तक किया जाता है। अंतिम दिन मंत्र सिद्ध हो जाता है। इसकी साधना में ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए मन, वचन और कर्म से शुद्ध रहना चाहिए। इस प्रकार हैः-

तेल तेल गौरी का खेल

राजा प्रजा कौंसल

चलके मेरे और मेरे परिवार के पैरो मेल

मन मोहे तन मोहे मोहे सभी शरीर

मोहे पंजे पीर

जय फूला कम करे खुल्ला

मलंगी तोड़ तंगी!!

इस अभिमंत्रित मंत्र को 21 बार पढ़कर सरसों तेल को भी अभिमंत्रित किया जाता है। उसी तेल को अपने शरीर पर मालिश कर जिसे आकर्षित करना है उसके पास जाने पर वह सम्मोहित हो जाता है।