दुर्गा वशीकरण मंत्र

दुर्गा वशीकरण मंत्र: वशीकरण अर्थात सम्मोहन या आकर्षण प्रयोग के विविध मंत्रों में देवी दुर्गा वशीकरण मंत्र भी विशिष्ट व अचूक प्रभाव वाले होते हैं। उनके कुछ सरलता के साथ सामान्य जाप किए जाते हैं, तो कुछ पूरी तरह से विधि-विधान के साथ विशेष वैदिक या तांत्रिक अनुष्ठान के बाद प्रयोग में लाए जाते हैं। इसके प्रयोगों से अगर स्वाभाव, आचरण या व्यवहार से अनियंत्रत हो चुके किसी व्यक्ति को अपने नियंत्रण में लाया जा सकता है तो रूठे निकट संबंध के व्यक्ति का मान-मनव्वल भी संभव है। वैचारिक और भावनात्मक मतभेद से बिगड़े चुके दांपत्य संबंध हों या फिर अनैतिकता की राह पर भटके हुए परिवार का कोई सदस्य, उन्हें सही राह पर लाया जा सकता है। इनसे प्रेम-संबंध की मधुरता भी बढ़ाई जा सकती है। महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित मार्कण्डेय पुराण की धार्मिक पुस्तक दुर्गा सप्तशती के कई अनुभव सिद्ध मंत्र बहुत ही उपयोगी हैं। कामनापूर्ति के कुल 13 अध्यायों में आठवां मिलाप और वशीकरण के लिए है, जिनमें एक अचूक असर देने वाला एक मंत्र इस प्रकार हैंः-

दुर्गा वशीकरण मंत्र
ज्ञानिनापि चेतांसि, देवी भगवती ही सा।

बलाद कृष्य मोहाय, महामाया प्रयच्छति।।

इस मंत्र का प्रयोग करने से पहले भगवती त्रिपुर सुंदरी मां महामाया का एकग्रता से ध्यान किया जाता है। ध्यान के बाद उनकी पूरी तरह से श्रद्धा-भक्ति के साथ पंचोपकार विधि से पूजा कर उनके सामने अपनी मनोकामन की इच्छा व्यक्त की जाती है। जिस किसी के ऊपर वशीकरण के प्रयोग करने हों उसका नाम लेते हुए मंत्र का 21, 51 या 108 बार जाप किया जाता है। इस अनुष्ठान के समय लाल रंग के प्रयोग महत्वपूर्ण है। इस संदर्भ में लाल आसन, लाल फूल और जाप के लिए उपयोग में आने वाली लाल चंदन की माला है। इसका प्रयोग अनैतिक कार्य यानि किसी को हानि पहुंचाने के उद्देश्य करने की सख्त मनाही है। अन्यथा यह मंत्र पलटवार भी कर सकता है।

दुर्गा सप्तशती बीज मंत्रः कुल सात सौ प्रयोगें के श्लाकों वाले दुर्गा सप्तशती में मारण के 90, मोहन के 90, उच्चाटन के 200, स्तंभन के 200, विद्वेषण के 60 और वशीकरण के 60 प्रयोग होते हैं। इसी कारण इसे सप्तशती कहा जाता है। इसमें वर्णित कवच को बीज , अर्गला को शक्ति और कीलक को कीलक कहा गया है। कवच के रूप में बीज मंत्र इस प्रकार हैः-

या चण्डी मधुकैटभादिदैतयदलनी या माहिषोन्मूलिनी,

या धुम्रेक्षणचण्डमण्ड मथनी या रक्तबीजशनी।

शक्ति शुम्भनिशुम्भ दैयदलनी या सिद्धिदात्री परा,

सा देवी नवकोटिमूर्तसहिता मां पातु विश्वेश्वरी।।

इस बीज मेंत्र में अपार शक्ति समाहित है और इसके प्रभाव से हर बाधाएं दूर होती हैं। समस्त दोषों से छुटकारा मिलने के साथ-साथ जीवन सुखमय बन जाता है। इसका लाभ गुरु के सानिध्य में साधना और मंत्र जाप से मिलता है। इसी के साथ देवी दुर्गा के सभी नौ रूपों के बीज मंत्र इस प्रकार हैंः-

शैलपुत्रीः ह्रीं शिवायै नमः!
ब्रह्मचारिणीः ह्रीं श्रीं अम्बिकायै नमः!
च्ंाद्रघंटाः ऐं श्रीं शक्तयै नमः!
कूष्मांडाः ऐं ह्रीं देव्यै नमः!
स्कंदमाताः ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नमः!
कात्यायनीः क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नमः!
कालरात्रिः क्लीं ऐं श्री कालिकायै नमः!
महागौरीः श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नमः!
सिद्धिदात्रीः ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नमः!
दुर्गा मंत्र साधनाः मां दुर्गा के मंत्रों की वैदिक रीति द्वारा साधना और बताए गए विधि-विधान के अनुसार जाप करने से हर तरह की मनोकामना पूर्ति संभव है। इस जाप को नवरात्रों के प्रतिपदा के दिन घट स्थापना के बाद मां दुर्गा की मूर्ति या तस्वीर की पंचोपचार द्वारा पूजा कर तुलसी या चंदन की माला से जाप करना चाहिए। अलग-अलग मनोकामनाओं के मंत्र अलग-अलग इस प्रकार हैंः-

सर्व विध्ननाशकः- सर्वबाधा प्रशमनं त्रिलोक्यस्यखिलेश्वरी, एवमेय त्वया कार्य मस्माद्वैरि विनाशनम्।
भय मुक्ति और ऐश्वर्य प्राप्तिः ऐश्वर्य यत्प्रसादेन सौभाग्य-आरोग्य सम्पदः, शत्रु हानि परोमोक्षः स्तुयते सान किं जनै।
विपत्ति नाशकः शरणगतर्दिनात्र परित्राण पारायण्ये, सर्वस्यार्ति हरे देवि नारायणि नमस्तुते।
कार्य सिद्धिः दुर्गे देवी नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके, मम सिद्धिंमसिद्धिं व स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय।
दरिद्रता नाशः दुर्गेस्मता हरसि भतिमशेशजन्तोः स्वस्थैंः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि, दरिद्रयदुखीायहारिणी कात्वदन्य।।
निरोगता और सौभाग्यः देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि में परम सुखम्, रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषोजहि।
सर्व कलयाणः सर्व मंगल मांगल्ये शिवे स्वार्थ साधिके, शरण्ये´्ंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते।
संतान प्राप्ति और बाधा मुक्तिः सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धन धान्य सुतान्वितः, मनुष्यों मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय।
शत्रु नाशः ऊँ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानं वाचंमुखं पदं स्तंभय जिह्वाम् कीलय बुद्धिविनाशाय ह्रीं ऊँ स्वाहा।
सुलक्षणा पत्नीः पत्नीं मनोरमां देही मनोवृत्तानुसारिणीम्, तारिणीं दुर्ग संसारसागरस्य कुलोद्भवाम्।
नौ शक्तियों की साधना के लिए नौ विभिन्न मंत्र बताए गए हैं जिनकी साधना शक्ति उपासन पर्व नौरात्र में की जाती है। वे इस प्रकार हैंः-

1.शैलीपुत्रीः वंदे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्, वृषारुदढां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।

2.ब्रह्मचारिणीः दधाना करपद्माभ्याम क्षमालाकमण्डलू, देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।

3.चंद्रघंटाः पिण्डजप्रवरारुढ़ा चण्डकोपास्तकैर्युता, प्रसादं तनुते मह्यां चंद्रघण्टेति विश्रुता।

4.कुष्माण्डाः सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च, दधाना हस्तपद्मभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे।

5.स्कंदमाताः सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया, शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी।

6.कत्यायनीः चंद्रहासोज्वलकरा शर्दूलवरवाहना, कत्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवघातिनी।

7.कालरात्रीः एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्ठी कर्णिकाकार्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।

वामपादोल्लोहलताकण्टकभूषण, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङक्री।

8.महागौरीः श्वेते वृषे समारुढा श्वेताम्बरधरा शुचिः, महागौरी शुभं दद्यन्महादेवप्रमोददा।

9.सिद्धिदात्रीः सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि, सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदायनी।

तीव्र दुर्गा साधनाः सभी तरह की मनोकामना पूर्ति के साथ-साथ आंतरिक शक्ति प्राप्त करने के लिए मां दुर्गा की साधना करना चाहिए। कारण मां दुर्गा की पूजा से धर्म, अर्थ, काम और मो़क्ष की प्राप्ति हो जाती है। उनकी कृपादृष्टि हमेशा बनी रहे या फिर किसी अचानक आ पड़ी विपदा को दूर करने के लिए दुर्गा मां की तीव्र साधना एक सार्थक उपाय हो सकता है। इसके लिए जाप किया जाने वाला मंत्र इस प्रकार हैः-

ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे,

ऊँ ग्लौं हूं क्लीं जूं सः ,

ज्वालय-ज्वालय, ज्वल-ज्वल प्रज्ज्वल-प्रज्ज्वल,

ऐं ह्रीं क्लीं चमुण्डायै विच्चे, ज्वल हं सं लं क्षं फट स्वाहा!!

इस मंत्र की साधना करने के लिए मां दुर्गा की तस्वीर के सामने पूजा करने के बाद। ऊपर दिए गए मंत्र का 108 बार जाप करें। पूजन के लिए लाल फूल का उपयोग में लाएं और मिठाई की भोग लगाएं। देवी की तस्वीर पर लाल चंदन का तिलक लगाकर खुद भी टीका लगा लें।

इसके अतिरिक्त आठ अक्षरों का मंत्र ऊँ ह्रीं दुं दुर्गायै नमः एक सिद्ध मंत्र है, जिसे प्रतिदिन सुबह स्नानादि के बाद लाल चंदन से 108 बार जाप करने का सकारात्मक लाभ मिलता है। इस मंत्र का नौरात्र के दिन प्रतिदिन 27 माला जाप करने के विधान बताए गए हैं।