जीवन सहज-सरल और गतिशील बना रहे तथा विभिन्न छोटे-बड़े कार्यों की राह में कोई बाधा नहीं आने पाए। प्रत्येक व्यक्ति इसकी कामना के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता है। फिर भी घरेलू वातावरण में पारिवारिक समस्या, दांपत्य में अनबन, आर्थिक तंगी, कर्ज, बीमारियां, विवाह में देरी या बाधा, प्रेम विवाह में अड़चनें, परस्त्री गमन या परपुरुष के प्रति आकर्षण जैसे अनैतिक संबंध, अदालती मामले, संतानहीनता की समस्या आदि से मन की व्याकुलता बढ़ सकती है। उलझाव बढ़ने से तनावग्रस्त जिंदगी में उब पैदा हो सकती है। संभव है समस्याओं के निदान वास्ते कोई राह दिखाई भी नहीं दे। ऐसी स्थिति में क्या आप जानते हैं कि तंत्र-मंत्र की साधना और वशीकरण के उपायों से इसका समाधान संभव है। वशीकरण के धर्मिक अनुष्ठान कर मानेवांछित परिणाम प्राप्त कर सकते हं। इससे मानिसक नकारात्मकता दूर हो सकती है और आपमें सकारत्मक ऊर्जा का संचार संभव होगा।
वशीकरण पूजा कैसे करे
वशीकरण किसी को अपने वश में कर अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने की एक असाधारण विद्या है, जिसे असानी से नहीं प्राप्त किया जा सकता है। कुछ लोगों के लिए यह काला जादू हो सकता है, लेकिन इसमें वैज्ञानिकता और सहयोगात्मक भावना के तथ्य छिपे हैं। यह तर्कपूर्ण तंत्र-मंत्र और अनुष्ठानिक पूजा-पाठ की साधना से संभव है। इसे शुभ मुहूर्त में विधि-विधान के साथ संपन्न किया जाता है। सभी देवी-देवताओं की षाड्शोपचार विधि से पूजा किया जाता है।
वशीकरण पूजा तैयारीः जरूरतमंद स्त्री या पुरुष को वशीकरण की पूजा या साधना काफी सूझ-बूझ और पूरी तैयारी के साथ शुरू करनी चाहिए। इस कार्य में दृढ़ता की आवश्यक है। पूजा की सामग्री तैयार करने से लेकर मंत्रोच्चारण तक पर विशेष ध्यान दिया जाता है। कार्य शुभारंभ से पहले भली-भांति यह सोच-विचार कर लेना चाहिये कि वे जो करने जा रहे हैं, उससे किसी का अहित तो नहीं होगा। मन को पूरी तरह से साधना के प्रति कंद्रित बनाए रखना होगा। साहस और आत्मविश्वास की दृढ़ता के साथ किसी भी तरह की बाधा से निबटने की क्षमता बनानी होगी। किसी योग्य गुरु का आशीर्वाद और उनके निर्देशों का पालन करना होगा।
इसके साथ ही कार्यसिद्धि के लिए पूर्ण निर्णय लेने के बाद सात तरह की शुद्धियों की ओर ध्यान देना जरूरी होगा। वे हैंः- शरीर, वस्त्र, मन, भूमि, पूजन सामग्री, धन और विधि-विधान। इन्हें अपनाकर साधना करने वाला व्यक्ति खुद को पूरी तरह से वशीकरण पूजा योग्य पात्र समझ सकता है। हालांकि उनके द्वारा साधना के प्रयोग चाहे जिस कार्य की सफलता के लिए हों, उसके पूर्ण विधि-विधान पर ध्यान देना आवश्यक है। साधना के दौरान श्रद्धा और विश्वास हमेशा बनाए रखना होगा। कुछ प्रयोगोें में मंत्र और भोजन संबंधी सावधानी भी वरतने की जरूरत होती है। साथ ही राजस्वला का स्पर्श भी अपवित्रता की श्रेणी में आता है।
वशीकरण पूजा सामग्रीः वशीकरण की पूजा संबंधी आवश्यक सामग्रियों में बैठने की आसनी, जल, गंध, अक्षत, पुष्प, अबीर, धूप, दीप नवैद्य, विभिन्न किस्म के ताजे फल, दक्षिणा के लिए मुद्राएं आदि मुख्य हैं। इनके बारे में विस्तृत जानकारी इस प्रकार हैः-
वशीकरण पूजा आसनीः किसी भी तरह की साधना के लिए एक साफ-सुथरेे आसनी अर्थात बैठने के लिए बिछावन की जरूरत होती है, जिसे जमीन पर बिछाई जाती है। इसका आकार गोलाकर, आयताकार या चैकोर हो सकता है। एक जमाने में यह कुश की बनी होती थी, जबकि इनदिनों उन या कंबल बनाने वाली रेशों की बनाई जाती है। इनके रंगों पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है। जैसे श्वेत रंग की आसनी का इस्तेमाल शांति और सात्विक कर्म से संबंधित साधना के लिए किया जाता है, तो काले और पीले रंग की आसनी का उपयोग मारण-उच्चाटन के लिए किया जाता है।
वशीकरण पूजा आसनः पूजन के लिए बैठने वाले आसनां अर्थात तरीके पर भी देना होता है। जैसे- पद्मासन, अर्द्धपद्मासन, सिद्धासन, भद्रासन, सुखासन और वीरासन। इन आसनों पर बैठने के तरीके पतंजलि द्वारा बताया गया है। उनके योगदर्शन में दिए गए एक सूत्र के अनुसार साधक को उपासना के समय ऐसे आसन का इस्तेमाल करना चाहिए जिसपर बैठने से मन प्रसन्न हो जाए। कोई शारीरिक कष्ट नहीं हो तथा उस पर लंबे समय तक बैठा जा सके। साथ ही बैठने की पद्धति में कोई अड़चन नहीं आए। पद्मासन को सबसे बेहतर और श्रेष्ठ माना गया है है। इस आसन में साधक दाहिने पैर को उठाकर बाईं जांघ पर तथा इसी प्रकार से बाएं पैर को उठाकर दाहिनी जांघ पर रखा लेता है। बैठने की इस मुद्रा में रीढ़ की हड्डी सीधी तनी रहती है। दोनों हाथ घुटनों पर या गोद में रखकर आंखें बंद करके जाप किया जाता है।
अर्द्धपद्मानस की मुद्रा पहली से थोड़ी सरल है, जिसमें साधक बाएं पांव को दाहिनी जांघ के पास रखता है, उसके बाद पुनः दाएं पांव को बाईं जांघ पर रख लेता है। इस तरह के आसन में जप, स्वध्याय, प्राणायाम किया जा सकता है। सिद्धासन पद्मासन का ही एक विकसित रूप है।
भद्रासन एक तरह ही अर्द्धपद्मासन के समान पैरों को रखने के बाद साधक दोनों हाथों को घुटनों पर रख लेता है। साधरण किस्म के आसन सुखासन पालथी मारकर बैठना है, जबकि वीरासन से उग्र साधना की तैयारी की जा सकती है। इसमें दोनों पैरों को घुटनों से मोड़कर कमर के नीचे पीछे की ओर रखा जाता है।
सुगंध: पूजन के लिए वातावरण को सुवासित बनाए रखना आवश्यक है। इसमें यंत्र लेखन और तिलक का विधन होता है। यह श्वेत चंदन, लाल चंदन, केशर, कस्तूरी, गोपी चंदन, सिंदूर, काजल, कुमकुम, गुलाल आदि से संभव है। इन वस्तुओं से गंध तैयार किये जाते हैं।
चावल और फूल-फलः हर तरह की पूजा के लिए चावल का प्रयोग किया जाता है, लेकिन इसे तांत्रिक पद्धति से किया गया उपयोग साधना को सफल बनाने में सहायक है। इसे प्रयोग से पहले शुद्ध किया जाता है। बाद में उसमें कुमकुम और सिंदूर मिलाकर थोड़ा रंगीन सुगंधित बना लिया जाता है। इसके साथ ही फल व फूल के बगैर देवताओं को खुश नहीं किया जा सकता है। पत्रों का भी विशेष महत्व है। जैसे तुलसी दल, बेलपत्र, दूर्वा आदि। ग्रंथों में फूल और पत्रों के महत्व को बताया गया है कि पुष्पों से देवी-देवता प्रसन्न होते हैं। फूलों को धर्म, अर्थ, काम, श्री, स्वर्ग और मोक्ष देने वाला बताया गया है।
धूप-दीपः देवी-देवताओं की उपासना के दौरान अग्नि प्रज्वलित करने का प्रावधान है। इससे देवता प्रसन्न होते हैं। देवता भोजन अग्नि के माध्यम से ग्रहण करते हैं। इसलिए देवता को आवाहित कर यज्ञ और हवन किये जाते हैं। इसी का एक रूप धूप है। यज्ञ या हवन में सुवासित वस्तुओं को डाला जाता है ताकि वातावरण यज्ञमय हो जाए। धूप तैयार करने के लिए देवी-देवताओं का भी ख्याल रखा जाता है। जैसे देवी को प्रसन्न करने के लिए चंदन, अगर, गूगल, कपूर, शर्करा, गोघृत एवं सुगंधित पदार्थ आदि का इस्तेमाल किया जाता है।
धूप की तरह दीप यानी दीपक जलाने का महत्व है। दीप अग्नि का प्रतीक है। कुछ प्रयोगों में तो अखंड दीप जलाने का विधन है, तो कुछ में कार्यारम्भ से लेकर कार्य समाप्ति तक दीप जलाए जाते हैं। तांत्रिक प्रयोगों के दौरान स्वतंत्र दीपक जलाने और उसकी विधिवत पूजा करने का विधन है। इससे अभीष्ट देवता प्रसन्न होते हैं। शांतिकर्म के लिए घृत यानी घी के दीप जलाए जाते हैं तो उग्रकर्म के लिए सरसों तेल के दीप जलाने का विधन बताया गया है।
तिलकः वशिकरण की तांत्रिक साधना में प्रयोग किया जाता है। यह विशिष्ट आकारों में प्रधानता लिए ललाट पर लगाया जाता है। देवी भक्ती के लिए गोल बिंदी या त्रिशूल का आकार बनाया जाता है तो शिवभक्त त्रिपुण्ड्र, वैष्णव उफध्र्व पुण्ड्र लगाये जाते हैं। सह ललाट के अलावा भुजा, कंठ, वक्षस्थल, उदर, कान की लौ पर भी लगाये जाते हैं।
नवैद्यः इष्टदेव की पूजा-आराधना से पहले नवैद्य देने का विधन है। इसमें अन्न, फल या रसदार खाद्य पदार्थ समर्पित किये जाते हैं। इन्हें ही नवैद्य कहा जाता है। कार्य के आधार पर इसमें बदलाव किया जाता है, सात्विक उपासना में देवता को खीर या खिचड़ी देने का विधन बताया गया है तो कहीं-कहीं मांस, दही आदि भी दिया जाता है।
वशीकरण पूजा आरतीः पूजा के लिए दीपक और धूप की तरह ही आरती के बगैर वशीकरण पूजा अधूरी रह जाएगी। आरती कपूर या घी से किया जाता है। इसे तांत्रिक दृष्टिकोण से किया जाना चाहिए। जैसे उसमें बत्तियों की संख्या और घुमाने के बारे में निर्देश का पालन करना जरूरी है। आरती देवता के समक्ष घुमाकर की जाती है उनके बीजमंत्र की आरती घुमाकर अकृति बनाई जाती है।